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Showing posts from July, 2018

सुख का अध्यादेश

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     सुख का अध्यादेश राजा  हंसता है, खिलखिलाता तो प्रजा दुखी हो जाती। वो अच्छा पहनता-खाता तो दुखी! कोई योजना बनाता ,वादे करता ,सपने दिखता,अतीत में जाता, भविष्य बताता, पर सब दुखी । जब दुख का पानी सिर से ऊपर जाने लगता तो राजा ने आधी रात के बाद से सुखकल लगाने की घोषणा कर दी, किसी नागरिक को अब अब दुखी होने या दुखी होने की इजाजत नहीं थी  दुःख को उनके मौलिक अधिकार से हटा दिया गया था । जो बाकायदा यानी किसी आपदा या दुर्घटना के कारण दुखी होंगे उन्हें  राज्य मुआवजा देगा , लेकिन  इसके बाद भी दुःखी हुए तो सजा का प्रवधान है।  वेवजह दुखियारों या आदतन दुखियारों को टैक्स देना होगा । जो लोग इश्क़ में दुखी होंगे उन्हें न्याय करने वाली भीड़ को सौंपा जाएगा ।परिजन आदि की मौत पर उनके निकटतम लोगों को  तीन दिन दुखी होने की इजाजत होगी। बिना वजह रोने की इजाजत सिर्फ एक साल  के बच्चे तक को होगी।  जो लोग दुख के बल पर ज़िंदा रहते हैं, उन्हें दुखी होने का परमिट लेना होगा।                जो गरीब गरीबी का बहाना बना कर दु...

🇮🇳🇮🇳कारगिल जरा याद करो कुर्बानी🇮🇳🇮🇳

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                              26 जुलाई1999 26 जुलाई 1999 में हमारे जवानों ने कारगिल से पाक घुसपैठियों को खदेड़ा था। तब से यह दिन हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।।।     🇮🇳🇮🇳🇮🇳जय हिन्द की सेना🇮🇳🇮🇳🇮🇳 अंकित महेश कुमार जैन

पत्थर की मूर्ति v/s वीतराग अवस्था

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                      ।। वीतराग अवस्था , मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर।।       हमारे मन मे  बहुत सारे सवाल होते है  मन्दिर को लेकर,  भगवान को लेकर, की हम मंदिर क्यो जाते है ,वहाँ जाकर क्या करना चाहिए।। इसके लिए , मैंने अपने गुरुवर विनिश्चय सागर जी महाराज के मुखारविंद से कुछ  जो थोड़ा कुछ भी सीखा आपके लिए छोटा सा अध्याय उसमे से बताता हूं । हो सकता आपके कुछ सबालों के जवाब यहाँ से मिल जांय।।                             आप सब जानते हैं , कोई भी सरकारी या निजी कार्य के लिए हम आवेदन करते हैं तो उसमें प्रशिक्षण लेते है, हम यह इंडिया की सबसे बड़ी  सरकारी पोस्ट आईएएस की बात करे तो उसमें परीक्षा के पहले इतना सब पूछते है और फिर बाद मै, 3 साल का प्रशिक्षण अलग से देते है जिससे वह अधिकारी अपने कार्य को सही तरीके से कर सके, जो उसका कार्य है उसमें मग्न होकर, लगनशीलता , जिम्मदारी, ईमानदारी,इत्यादि के साथ कर्तव्यनिष्ठ होकर कार्य करे। ...

महाराजा छत्रसाल + धुवेला समाधि स्थल

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बुं देलखंड  में कई प्रतापी शासक हुए हैं। बुंदेला राज्‍य की आधारि‍शला रखने वाले   चंपतराय   के पुत्र   छत्रसाल   महान शूरवीर और प्रतापी राजा थे। छत्रसाल का जीवन मुगलों की सत्ता के खि‍लाफ संघर्ष और   बुंदेलखंड   की स्‍वतंत्रता स्‍थापि‍त करने के लि‍ए जूझते हुए नि‍कला। महाराजा छत्रसाल अपने जीवन के अंतिम समय तक आक्रमणों से जूझते रहे। बुंदेलखंड केशरी   के नाम से वि‍ख्‍यात महाराजा छत्रसाल के बारे में ये पंक्तियां बहुत प्रभावशाली है: इत यमुना, उत नर्मदा, इत चंबल, उत टोंस। छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥ चंपतराय जब समय भूमि में जीवन-मरण का संघर्ष झेल रहे थे उन्हीं दिनों ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1707 (सन 1641) को वर्तमान  टीकमगढ़  जिले के लिघोरा विकास खंड के अंतर्गत ककर कचनाए ग्राम के पास स्थित विंध्य-वनों की मोर पहाड़ियों में इतिहास-पुरुष छत्रसाल का जन्म हुआ। अपने पराक्रमी पिता चंपतराय की मृत्यु के समय वे मात्र 12 वर्ष के ही थे। वनभूमि की गोद में जन्में, वनदेवों की छाया में पले, वनराज से इस वीर का उद्गम ही तोप, तलवार और रक्त प्रव...