सुख का अध्यादेश

सुख का अध्यादेश राजा हंसता है, खिलखिलाता तो प्रजा दुखी हो जाती। वो अच्छा पहनता-खाता तो दुखी! कोई योजना बनाता ,वादे करता ,सपने दिखता,अतीत में जाता, भविष्य बताता, पर सब दुखी । जब दुख का पानी सिर से ऊपर जाने लगता तो राजा ने आधी रात के बाद से सुखकल लगाने की घोषणा कर दी, किसी नागरिक को अब अब दुखी होने या दुखी होने की इजाजत नहीं थी दुःख को उनके मौलिक अधिकार से हटा दिया गया था । जो बाकायदा यानी किसी आपदा या दुर्घटना के कारण दुखी होंगे उन्हें राज्य मुआवजा देगा , लेकिन इसके बाद भी दुःखी हुए तो सजा का प्रवधान है। वेवजह दुखियारों या आदतन दुखियारों को टैक्स देना होगा । जो लोग इश्क़ में दुखी होंगे उन्हें न्याय करने वाली भीड़ को सौंपा जाएगा ।परिजन आदि की मौत पर उनके निकटतम लोगों को तीन दिन दुखी होने की इजाजत होगी। बिना वजह रोने की इजाजत सिर्फ एक साल के बच्चे तक को होगी। जो लोग दुख के बल पर ज़िंदा रहते हैं, उन्हें दुखी होने का परमिट लेना होगा। जो गरीब गरीबी का बहाना बना कर दु...