पत्थर की मूर्ति v/s वीतराग अवस्था
।। वीतराग अवस्था , मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर।।
हमारे मन मे बहुत सारे सवाल होते है मन्दिर को लेकर, भगवान को लेकर, की हम मंदिर क्यो जाते है ,वहाँ जाकर क्या करना चाहिए।। इसके लिए , मैंने अपने गुरुवर विनिश्चय सागर जी महाराज के मुखारविंद से कुछ जो थोड़ा कुछ भी सीखा आपके लिए छोटा सा अध्याय उसमे से बताता हूं । हो सकता आपके कुछ सबालों के जवाब यहाँ से मिल जांय।।
आप सब जानते हैं , कोई भी सरकारी या निजी कार्य के लिए हम आवेदन करते हैं तो उसमें प्रशिक्षण लेते है, हम यह इंडिया की सबसे बड़ी सरकारी पोस्ट आईएएस की बात करे तो उसमें परीक्षा के पहले इतना सब पूछते है और फिर बाद मै, 3 साल का प्रशिक्षण अलग से देते है जिससे वह अधिकारी अपने कार्य को सही तरीके से कर सके, जो उसका कार्य है उसमें मग्न होकर, लगनशीलता , जिम्मदारी, ईमानदारी,इत्यादि के साथ कर्तव्यनिष्ठ होकर कार्य करे।
समझ तो आ ही गया होगा कि कोई भी कार्य हो प्रशिक्षण कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन हम तो पैदा होने के कुछ दिन से ही मंदिर जाने लगते है ,और ऊपर से हम भी बड़े होकर छोटो को मंदिर ले जाते ,चलो मंदिर जाना/ले जाना अच्छी बात है लेकिन पता हमे क्या सिखाया जाता है , जो सामने पत्थर की मूर्ति रखी उसको नमस्कार करो ,उसके सामने झुको, अरे ऊपर से यह भी बताते की कैसे नमोस्तु करना ,और जब हम थोड़े बड़े हो जाते (चलने लायक) तो हमे पूजा बाले कपड़ा पहिना कर मंदिर भेजा जाता है अब सिखाया जाता कि बो पंडित जी मंत्र पढ़ रहे ,जब सब स्वाहा बोले तब सबके जैसे थाली मे से सामग्री उठा कर हवन वेदी मे डालना, मतलब समझे वहाँ भी कॉपी पेस्ट करना सीखा दिया गया,
और ऐसे ही चलता रहता चलता रहता हम बड़े हो जाते है .......
अब आपको तो पता ही है हम मंदिर जाते तो ,सच्चे मन ,साफ मन, अहिंसा का भाव के साथ और ईष्या , मन मुटाव, लड़ाई झगड़े, गुस्सा, परिग्रह, मोह माया, इत्यदि छोड़कर जाते हैं। लेकिन अब यहाँ क्या हुआ कि मैं पूजा करने बैठा किसकी उस पत्थर की मूर्ति की ,पंडित जी को मंत्र पढ़ना और मुझे स्वाहा बोलना ,यही करना ना ??लेकिन पूजा के बीच मे ही एक ऐसा व्यक्ति दिख जाता जो हमारा दुश्मन टाइप हो तो तुरंत गुस्सा आ जाती , यदि कोई ऐसा दिख जाय जिससे चाहते हो हमारे बच्चे ,पति/पत्नी, माता/पिता इत्यादि तो प्रेम भाव आने लगता। मतलब समझे कि नही, सुनो" हम मंदिर क्यो गए थे सच्चे मन से पत्थर की मूर्ति की पूजा करने ,लेकिन जो सामने आया उसको देखने लगे पता ही नही पूजा पाठ कहा गया, अब खुद बताओ की मंदिर मे हम भगवान की पूजा करने गए थे भगवान को देखने गए थे कि इन सब को हाँ????
सुनो ! हम मंदिर जाते बचपन से हमारे पास कोई प्रशिक्षण नही होता , बस यही सिखाया गया होता कि जो मंदिर को भगवान के सामने माथा टेक कर आओ , बड़े हो जाओ तो पूजा पाठ करो जे वो,,, लेकिन हमें ये नही बताया जाता कि क्यो माथा टेक रहे हम इनके सामने?? ,क्यो पूजा कर रहे इनके लिए, ?? यदि हम बचपन मे माथा टेकने से पहले उस पत्थर की मूर्ति की *वीतराग अवस्था* के बारे मे बता दिया जाए, पूजा क्यों करते है पंडित के पडने पर हम स्वाहा क्यो बोलते क्या ऐसा नही हो सकता क्या हम मंत्र उच्चारण करे और पंडित स्वाहा बोले ??, यदि बचपन मे माथा टेकने और कॉपी पेस्ट से अच्छा उस मूर्ति की वीतराग अवस्था, राम मूर्ति की मर्यादा पुरूषोत्तम अवस्था के बारे मे बताया गया होता , तो ना आज पूजा करते समय किसी के दिखने ना दिखने से कोई फर्क नही पड़ता, हम अपनी भक्ति मै लीन रहते, और यदि उनकी वीतरागता का थोड़ा भी ज्ञान होता ना तो हमें एक ही मूर्ति मे ईश्वर, अललाह ओर भगवान दिखते , भगवान राम की मूर्ति मे भी महावीर दिखते।।
।।।।।।।। मूर्ति क्या फिर ,हर इंसान मै भी भगवान नजर आते।।।।।।।
🙏🙏कुछ गलत बोला हो तो क्षमा प्रार्थी।।।🙏🙏
🙏🙏🙏 जय जिनेन्द्र, जय श्री राम, हे! अल्लाह🙏🙏
यदि बात समझ आयी हो तो आप लिंक सांझा कर सबको बता सकते है, अपनी राय भी आप कमेंट बॉक्स मे दे सकते हो।।।
और ऐसे ही चलता रहता चलता रहता हम बड़े हो जाते है .......
अब आपको तो पता ही है हम मंदिर जाते तो ,सच्चे मन ,साफ मन, अहिंसा का भाव के साथ और ईष्या , मन मुटाव, लड़ाई झगड़े, गुस्सा, परिग्रह, मोह माया, इत्यदि छोड़कर जाते हैं। लेकिन अब यहाँ क्या हुआ कि मैं पूजा करने बैठा किसकी उस पत्थर की मूर्ति की ,पंडित जी को मंत्र पढ़ना और मुझे स्वाहा बोलना ,यही करना ना ??लेकिन पूजा के बीच मे ही एक ऐसा व्यक्ति दिख जाता जो हमारा दुश्मन टाइप हो तो तुरंत गुस्सा आ जाती , यदि कोई ऐसा दिख जाय जिससे चाहते हो हमारे बच्चे ,पति/पत्नी, माता/पिता इत्यादि तो प्रेम भाव आने लगता। मतलब समझे कि नही, सुनो" हम मंदिर क्यो गए थे सच्चे मन से पत्थर की मूर्ति की पूजा करने ,लेकिन जो सामने आया उसको देखने लगे पता ही नही पूजा पाठ कहा गया, अब खुद बताओ की मंदिर मे हम भगवान की पूजा करने गए थे भगवान को देखने गए थे कि इन सब को हाँ????
सुनो ! हम मंदिर जाते बचपन से हमारे पास कोई प्रशिक्षण नही होता , बस यही सिखाया गया होता कि जो मंदिर को भगवान के सामने माथा टेक कर आओ , बड़े हो जाओ तो पूजा पाठ करो जे वो,,, लेकिन हमें ये नही बताया जाता कि क्यो माथा टेक रहे हम इनके सामने?? ,क्यो पूजा कर रहे इनके लिए, ?? यदि हम बचपन मे माथा टेकने से पहले उस पत्थर की मूर्ति की *वीतराग अवस्था* के बारे मे बता दिया जाए, पूजा क्यों करते है पंडित के पडने पर हम स्वाहा क्यो बोलते क्या ऐसा नही हो सकता क्या हम मंत्र उच्चारण करे और पंडित स्वाहा बोले ??, यदि बचपन मे माथा टेकने और कॉपी पेस्ट से अच्छा उस मूर्ति की वीतराग अवस्था, राम मूर्ति की मर्यादा पुरूषोत्तम अवस्था के बारे मे बताया गया होता , तो ना आज पूजा करते समय किसी के दिखने ना दिखने से कोई फर्क नही पड़ता, हम अपनी भक्ति मै लीन रहते, और यदि उनकी वीतरागता का थोड़ा भी ज्ञान होता ना तो हमें एक ही मूर्ति मे ईश्वर, अललाह ओर भगवान दिखते , भगवान राम की मूर्ति मे भी महावीर दिखते।।
।।।।।।।। मूर्ति क्या फिर ,हर इंसान मै भी भगवान नजर आते।।।।।।।
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