दोस्ती वही जो दिखाई जाए,,,(हास्य व्यंग्य)






आज के दौर की दोस्ती में प्रदर्शन जिस तरह सर्वाधिक प्रचलित मापदंड बन गया उस देखते  हुए सोचता हूं कि तब क्या होता जब महाभारत काल में इंटरनेट , tv, वगैरह होता । तब शायद कुछ ऐसा होता कि सुदामा श्री कृष्ण को ट्वीट के जरिये सूचित करते हे! बाल सखा मैं महल के बाहर प्रतिक्षरत हूं। ट्वीट मिलते ही श्रीकृष्ण के दरबार प्रमुख ने प्रभु को सूचना देने के पहले आनन फानन  सभी खबरिया चेनलों को संदेश भेज दिया होता । जल्द ही समस्त कैमरों का पूरा ध्यान सुदामा के बढ़ते कदमों पर होता । आंखों से एक बूंद भी गिरती तो लाइव प्रसारण होता , क्योंकि शायद आज की तरह एक एक आंसू टीआरपी का मोती उस युग में  भी होता । दुनिया भर में खबर फैलती की महल के द्वार से सुदामा  के प्रवेश की खबर मिलते ही प्रभु ने स्वयं उनकी आगवानी के लिए प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया । प्रभु अपने मित्र को भावुकता से गले लगा रहे हैं। सुदामा  के चरणों को धोया जा रहा है।  इस इस सबका  सीधा प्रसारण चल रहा होता। बैसे तो कृष्ण और सुदामा की दोस्ती का बखान आज भी होता है, लेकिन पता नहीं क्यो आज के दोस्त लोग इसकी चर्चा नहीं करते ।
शायद  इसलिए कि आज के युग में ऐसे ठिकाने कम ही हैं जहाँ कृष्ण और सुदामा में भेंट हो सके और बे दोस्त बन सके।

                   आज तो जो दोस्त बन जाते हैं वे इस फॉर्मूले पर अमल करते हैं कि दोस्ती वही जो दिखाई दे और दिखाई जाए । यह आपको पता ही है कि दोस्ती के दो रूप है , एक लड़का और लड़की के बीच और दूसरा लड़की- लड़की या फिर लड़का लड़का के बीच। दोस्ती जिसके भी बीच हो , आज की  दोस्ती तब ही दोस्ती कहलाती है जब दिन में कम से कम 10 बार फ़ोटो स्टेटस पर BFF लिख कर डाला जाए । हाथों में राखी कि भांति बे बैंड जिन्हें मित्रता सूत्र की संज्ञा दी गई हैं , बांधे जाएं । मैत्री संधि की औपचारिक घोषणा फ़्रेण्डशिप धागे को बांध लेने से ही हो जाती है ।
प्रदर्शन जब तक नहीं होगा तब तक दोस्ती को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

                   लगता है कि आधुनिक दोस्ती सहिंता के प्रथम खंड में यह समस्त नियम विस्तार से लिखे जा चुके हैं। 
  दोस्त को उसके दोस्त को दिन में कम से कम दो बार स्मरण कराना परम् आवश्यक है ही वह आपका दोस्त है!उसको उसकी उयोगिता नहीं बताने पर दोस्ती में दरार या मैत्री संधि रदद् होने की आशंका  में प्रबल  वृध्दि हो जाती हैं। महंगाई के इस दौर  की यह आधुनिक दोस्ती जेबों के आर्थिक आपातकाल की घोषणा होने तक साथ निभाती है।
दोस्ती  रेस्तरां में बैठकर खाने से है, दोस्ती मल्टीप्लेक्स में कार्नर सीट पकड़ कर फ़िल्म दिखाने से है।दोस्ती अपने सारे काम करवाने से है। यह फ़्रेण्डशिप मैन्युअल पोथी सिर्फ महिला मित्रों पर ही लागू होती हैं । सखा सखा  के बीच ऐसी आवश्यकता कम ही पड़ती है । लड़का -लड़का तो और विस्तारित है।। सबसे ईमानदार दोस्त तो मधुशाला में बैठकर प्रतिदिन अपने मित्र के साथ मधुपान करने बाले लोग होते हैं। यह जानकर भी की वे इससे धन, वैभव, प्रतिस्ठा , स्वास्थ्य सब खों देंगे , वे दोस्ती निभाने में लगे रहते हैं ।सखा सखा की दोस्ती  क्लास में नकल से लेकर फैल होने तक है तथा दंड में भी आनंद उत्पन्न करने बाली दोस्ती है। जबकि सखी सखी अगर बाजार में खरीदारी करते नजरें मिला ले और सिर्फ हाय हैल्लो ही करे तब भी वह शिखर वार्ता जैसी होती है।
              कुछ दोस्ती अटूट किस्म की होती है तो कुछ टूट किस्म की । जैसे ठेकेदार और सड़क की दोस्ती कभी बनती नहीं , इसलिए सड़के टूट कर गड्डों से दोस्ती कर लेती हैं।
     
        बैसे दोस्ती है तो सब कुछ है वरना  जीवन मर्सिडीज जैसी कार होने के बाद भी खाली फ्यूल टैंक जैसा हो जाता है।।।।
          ...........HAPPY FRIENDSHIP DAY.........

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

घुवारा किला

महाराजा छत्रसाल + धुवेला समाधि स्थल

23 december kisan divas